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रविवार, 16 मार्च 2014

उपहास उपहार---पथिकअनजाना—517 वीं पोस्ट




     जैसा जी चाहे यारों वैसी जिन्दगी तुम जी लो
     कोई क्या  कहेगा यह कडवा घूट  तुम पी लो
     खुदा व दुनिया का ताउम्र कहीं वजूद नही देखा
     खोई यह जिन्दगी दोनों ने खिंची लक्ष्मण रेखा
     क्या बुरा रावण गर अशोकवाटिका में ठहरावेगा
     प्रतीक्षा राम की उपहास उपहार नही बरसावेगा
     सोचो रावण व कौरवों में श्रेष्ठ कौन कहलावेगा
     खुदा जग रावण कौरवों को सत्ता हेतू लडने दो
     जो जी में पथिक अनजाना के आया  कहने दो
     इक किरण चमकती हैं जिसे राहे कर्म कहते हैं
     मानो यही सत्य करो सफर जिन्दगी का मीलों
     जैसा जी चाहे यारों वैसी जिन्दगी ????????????

     पथिक अनजाना

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