पुरूष की मूंछ----पथिक अनजाना---505 वीं पोस्ट
परिवर्तन
परिवर्तन परिवर्तन चारों ओर ही
ग्रामों नगरों व्यवहारों विचारों व
बाजारों में देखा
न रही अछूती नीति इंसानी काया रखरखाव की
शायद पहले ध्यान नही गया जो अब दिखता हैं
सुना पढा भारतीय पुरूष मूंछ प्रसिद्ध होती
थी
यह भी सुना इंसानी काया से पूंछ गायब हुई
थी
पुरूष की मूंछ का इक बाल बेशकीमती होता था
रहम मेरे खुदा अब तो पुरूष की मूंछ खो गई
ज्यों संख्या मूंछहीन पुरूषों की बढती
जाती हैं
शुक्र
खुदा का नारियाँ पर मूंछ बढती जाती हैं
गिरवी रखने को नही गृह में गिरवी हो रहे
हो
हीनता व समस्या ग्रसित हो शान्ति खो रहे
हो
नवीन युग के उदित सूर्य कांतिहीन हो रहे हो
पथिक अनजाना
बहुत सुंदर । ब्लाग पर नहीं देख पा रहा था ।
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