The five-in-one, or pentavalent vaccine is a real
innovation.
It's a single vaccine that protects children against five potentially lethal diseases: tetanus,
diphtheria, pertussis (whooping cough), Hepatitus B and Haemopghilus Influenzae B (which
causes
meningitis and pneumonia).
It's currently used in around 170 countries, and is increasingly being given to children in poorer
countries. In 2010, UNICEF bought 97 million doses.
Having five vaccines in one is also a real help for the health workers who are doing the
vaccinating.
It means they have fewer sorts of vaccines to carry and administer, so far less data to collect
when they're immunising children. This all means their efforts can reach more children.
Pentavalent vaccine support
Expanded Coverage
Since GAVI first launched the five-in-one pentavalent vaccine in Guyana in 2001, it has helped introduce it to 70 of the 73 GAVI-eligible countries, with the aim of reaching all 73 by the end of 2014.
The vaccine, administered in a three-dose schedule, offers protection against five diseases: diphtheria-tetanus-pertussis (DTP), hepatitis B, Haemophilius influenzae type b
By February 2013 this amounted to a total of 550 million doses shipped. Following its replenishment meeting in London June 2011 GAVI is now committed to immunising a further 224 million children with pentavalent vaccine by 2015.
MDG4
This represents an essential step towards achieving the Millennium Development Goal 4 of reducing under-five mortality rate by two thirds by 2015.
By 2020 GAVI aims to extend this further by immunising more than 550 million children, increasing coverage to 85 per cent.
The pentavalent vaccine is a combination of five
vaccines in one: diphtheria, tetanus, whooping
cough,
hepatitis
B
and Haemophilus influenza type b (the bacteria that
causes meningitis, pneumonia and otitis)
Immunization is the process whereby a person is made immune or resistant to an infectious disease, typically by the administration of a vaccine. Vaccines stimulate the body's own immune system to protect the person against subsequent infection or disease.
पैंटावेलेंट वैक्सीन क्या है क्यों भारत डोगरा जैसे लोग इसके खिलाफ
आ
खड़े हुए हैं ?आप भी अपनी राय लिखें। हमारी राय हम इसका समर्थन
करते हैं क्योंकि इसका अनुपालन करना करवाना अपेक्षाकृत आसान
दिखलाई देता है।
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टीकाकरण में किसी और की टोकाटोकी क्यों सहें
हाल में पेंटावेलेंट वैक्सीन के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल होने पर जो तीखा विवाद उठा है,उसने वैक्सीन क्षेत्र में सुधार की जरूरत को एक बार फिर रेखांकित किया है। इससे पहले संसद की स्थाई समिति ने वैक्सीन बनाने वाली अनेक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को बंद करने या वहां वैक्सीन उत्पादन रोकने की तीखी आलोचना की थी। इसके बाद पेंटावेलेंट वैक्सीन का केरल में उपयोग आरंभ होने पर इतना विरोध हुआ कि इसके लिए राज्य सरकार को एक समिति बनानी पड़ी। यह बात अलग है कि समिति की सिफारिशों का पूरी तरह पालन नहीं हुआ।
पेंटावेलेंट का वैक्सीन लगने के बाद केरल में अनेक बच्चों की मौत हुई। इसके बारे में जानकारी मिलने पर 12 विशेषज्ञों ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को पत्र लिखकर इस वैक्सीन से जुड़े खतरों के प्रति सचेत किया। इस वैक्सीन के उपयोग से भारत के अतिरिक्त वियतनाम, भूटान, श्रीलंका व पाकिस्तान में बच्चों की मौत के समाचार मिल चुके हैं। जहां तक अमेरिका व यूरोपियन यूनियन आदि का सवाल है तो ये विकसित देश पेंटावेलेंट वैक्सीन का उपयोग करते ही नहीं है। वियतनाम व भूटान जैसे विकासशील देशों ने भी बच्चों की मौतों के बाद इस वैक्सीन के उपयोग पर रोक लगाने की घोषणा कर दी है।
भारतीय टीकाकरण कार्यक्रम में डीपीटी वैक्सीन का उपयोग बहुत समय से होता रहा है। इस सस्ते वैक्सीन की उपयोगिता पर व्यापक सहमति बनी हुई है। पर कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों ने जोर दिया कि इसमें दो वैक्सीन हैपाटाईटिस बी व हिब जोड़ दिए जाएं। इस नए कंबीनेशन के वैक्सीन (डीपीटी प्लस Haemophilus Influenzae B (which causes meningitis and pneumonia). बोले तो 'हिब' प्लस 'हेप -बी' बोले तो Hepatitis -B) को पेंटावेलेंट वैक्सीन का नाम दिया गया है। यह डीपीटी से कहीं महंगा है और इसकी उपयोगिता जबर्दस्ती सिद्ध करने के लिए कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और उनसे जुड़े ऊंचे पदों पर बैठे विशेषज्ञों ने हेप बी और हिब से होने वाली क्षति को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया ताकि किसी तरह महंगे वैक्सीन का औचित्य सिद्ध किया जा सके। ऐसे एक विशेषज्ञ ने ताइवान के आंकड़ों का भारत के संदर्भ में इस्तेमाल किया, जबकि भारत के लिए उपलब्ध प्रामाणिक आंकड़ों की उपेक्षा की। इस तरह उसने हेप बी से होने वाली मौतों को 50 गुना बढ़ा कर प्रस्तुत किया।
पेंटावेलेंट विवाद की गहराई से जांच होने पर एक और हकीकत भी सामने आती है। जब वर्ष 2007-08 में सार्वजनिक क्षेत्र की डीपीटी इकाइयों का उत्पादन एक अनुचित आदेश से रोका गया तो इसका संसदीय समिति व अनेक विशेषज्ञों ने जमकर विरोध किया। इस बारे में जनहित याचिका भी दाखिल हुई। इसलिए यह उम्मीद बनने लगी कि इन सार्वजनिक इकाइयों में फिर डीपीटी उत्पादन संभव हो सकेगा। अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपना नया पत्ता खेला और कहा कि डीपीटी चाहिए ही नहीं, पेंटावेलेंट वैक्सीन लाना होगा। इस तरह सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को जो नवजीवन मिल सकता था, उसे छीनकर यह प्रयास किया गया कि नए वैक्सीन के माध्यम से निजी क्षेत्र की कंपनियों व बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ही भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में बड़ा स्थान मिल जाए।
अनेक बच्चों की मौत के बाद जब वियतनाम और भूटान में पेंटावेलेंट पर रोक लगी, तो यह विवाद तीखा होने लगा। अदालतों में भी सवाल उठने लगे कि जिस वैक्सीन का उपयोग विकसित देश स्वयं नहीं करते उनका प्रसार यहां क्यों कर रहे हैं। इस पूरे विवाद ने वैक्सीन क्षेत्र में जरूरी सुधार की ओर भी ध्यान दिलाया है। कुछ समय पहले तक तो कोई वैक्सीन नीति थी ही नहीं जिसके कारण बहुत मनमाने निर्णय लिए जा रहे थे। अब हाल में बहुत हड़बड़ाहट में और बहुत गुपचुप ढंग से जो नीति बनाई गई है वह स्वयं विवादों से घिर गई है। इसके लिए न तो कोई व्यापक विमर्श हुआ, न पहले से विशेषज्ञों द्वारा मेहनत से तैयार किए गए प्रस्तावों को ध्यान में रखा गया। पारदर्शिता नहीं अपनाई गई। इसलिए नए सिरे से वैक्सीन नीति में सुधार करना जरूरी है। वैक्सीन देश की जरूरतों और साधनों के अनुकूल होने चाहिए।
अनेक बच्चों की मौत के बाद जब वियतनाम और भूटान में पेंटावेलेंट पर रोक लगी, तो यह विवाद तीखा होने लगा। अदालतों में भी सवाल उठने लगे कि जिस वैक्सीन का उपयोग विकसित देश स्वयं नहीं करते उनका प्रसार यहां क्यों कर रहे हैं। इस पूरे विवाद ने वैक्सीन क्षेत्र में जरूरी सुधार की ओर भी ध्यान दिलाया है। कुछ समय पहले तक तो कोई वैक्सीन नीति थी ही नहीं जिसके कारण बहुत मनमाने निर्णय लिए जा रहे थे। अब हाल में बहुत हड़बड़ाहट में और बहुत गुपचुप ढंग से जो नीति बनाई गई है वह स्वयं विवादों से घिर गई है। इसके लिए न तो कोई व्यापक विमर्श हुआ, न पहले से विशेषज्ञों द्वारा मेहनत से तैयार किए गए प्रस्तावों को ध्यान में रखा गया। पारदर्शिता नहीं अपनाई गई। इसलिए नए सिरे से वैक्सीन नीति में सुधार करना जरूरी है। वैक्सीन देश की जरूरतों और साधनों के अनुकूल होने चाहिए।
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