हाय पहले किया करते थे जवानी में यारों को देखकर
हाय की मौजूदगी आज भी तनहा दीवारों को देख कर
करीब फैली इंसानी जमात को देती हाय सदा मात रही
काश राह हाय की रूके जिन्दगी इंसा की आसान होवे
मानो हर मंजिल के राही दौडते सहारा हाय में हैं खोये
नही बता सका मुझे कोई अमर हाय कहाँ से आ रही
यह हाय ही हें जो ताउम्र सदैव इंसान के साथ ही रही
यह हाय ही है जिसने आज तक हमे बाय बाय न
कही
पथिक अनजाना
बहुत सुंदर .........
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