चर्चा करें जो कारक हैं –पथिक अनजाना---526 वी.पोस्ट
रोम रोम चित्कारता वह भी देख लिया
दुनिया में
जहाँ प्रेम शांति आनन्द छाया वहाँ भी वहशी काया
सत्ता के लोभी पाखण्डी इंसान धारते वहशी काया
पुत्र पिता की क्या कहें माँ जान हर लेती पुत्र की हैं
सुना पत्नियाँ आगोश में गैरों के खेलती जी लेती हैं
सेवक जनता के बनते वंशवाद को वे सहलाते हैं
सर्फ हिन्दोस्तां मै ऐसा देखा जहाँ नेता ऐसे होते हैं
मूर्ख जनता चुनती जिन्हें रछक ही भक्षक बनते हैं
देखी न ऐसी जनता जो इनको सिंहासन पहुंचाती हैं
कैसे कहते योनि इंसा विचारक ये प्रकृति संहारक है
कवियों सावन के अन्धे न बनो जगावो जो विचारक
कवि बुढिजीवी चर्चामंच पर चर्चा करें जो कारक हैं
पथिक अनजाना नही मास ऋतु गाता धुनिया में रे
रोम रोम चित्कारता यारों देख ली वहशी दुनिया रे
पथिक अनजाना
सराहनीय !
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