आश्चर्य भरी दुनिया के हरअंग निवासियों में आश्चर्य समाया हैं
कृत्य सारे जीवों के आश्चर्यपूर्ण रंग रूप आकार प्रकार आश्चर्य
भरे
इंसान आश्चर्य पूर्ण प्राणी कहलाता वैसा ही आश्चर्य पूर्ण विधाता
इंसानी इकाई में रचियता मां निर्दोष दोष सारे कर्ता के हिस्से में
संतान गलत तो भी दोषी पिता परिवारकर्ता होने के नाते मानते हैं
माँ मासूम है बेचारी बच्चों को बचाती हैं सो दोषी पिता जानते हैं
विडम्बना खुदा भी नही अछूता कार्य
संपन्न योग्यता मेरी
गर असंपन्न ,अवरोधित तो खुदा नही
सुनता हैं ही कहाँ ?
माँ मासूम है दोषों हेतू रहती सदैव पिता के नाम की धूम
नही जान पाते हम जाने क्यों अन्याय
हर कृत्य में आया हैं
लुटेरों के प्रदर्शनीय विचार
व्यवहार संहिता मे स्थान न पाया
आगामी पाँच वर्षों तक स्थिति यथावत
का आदेश थमाया
पथिक अनजाना
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