विषाक्त रसों के भोग प्रयोग व संयोग में शांति की खोज करते हम
जानते हैं रसायन विषैले पर
न मिले तो शोक अनचाहे मिले संयोग
वैद्य प्रारब्ध ज्योति इंसा
को राह दिखाती पर समझ तो आती नही
नशा इसका ऐसा चढा इंसान पर
कि मंजिल व राह याद आती नही
चमकती बिजलियाँ चेतावनियाँ
देती बादल पुकार कहते दलदल हैं
विचारों विकारों से खाली
करने के प्रयास में इंसा राह गलत चलता
पर गहरी सांसें छोड उर्जा
प्रकृति मय शांति भरना समझ आता नही
क्यों चुनें विष को जबकि जग
में अमृतप्याले भी मौजूद हुआ करते
दोंनों का अंतर जानकर इंसा
विष को अमृतमान कर क्यों संजोते हैं
नशे से शांति नही मिल सकती
पूरा इंसान जन्म क्यों तुम खोते हो
रहो दुनिया में पर बन अनजान
तभी पथिक अनजाना तुम होते हो
राह गर यह चल जिन्दगी सुगम तुम्हारी
वआनन्द मयी हो जावेगी
जितना जोडोगे खुद को जग से
मायूसी अशांति तुम पर छा जावेगी
पथिक अनजाना
कटु सत्य...
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