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मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

अंक बढाते हैं-पथिकअनजाना—588 वी पोस्ट



यारों मुझसे क्यों खफा खफा सारा ही जहान हैं
मतभेद विचारों का जो छाया रहता अनजान हैं
घिरा हूं प्रश्न गुरू को ले जवाब मैं न पा सका
कहने पर, चमत्कारियों को गुरू न सजा सका
निगाहें कर्मों पर या भक्ति पर सवारी दो नांवे
कहते सुकर्म करो वही भविष्य तुम्हारा सुधारेंगे
कहते भक्ति करो रब वैतरणी वही पार करावेंगे
कर्म करने से पहले न सोचा सजा से भय क्यों ?
यारों हंसते हुये सजा स्वीकारे अगले कर्म सुधारे
अभ्यास करे व ध्यान आत्मा की आवाज पर धरें
प्रश्न बाद उत्तर प्राप्ति तक शांति को अपनायेगे
अपनी बेसब्री से हम तो खुद सुराह को खो देते हैं
स्वार्थों से फैसला खुद दुष्कर्मौं के  अंक बढाते हैं

पथिकअनजाना

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