ताउम्र मेरी आंखों से अश्रु
बरसते ही रह गये
जिन्दगी राह थी मैं राही
सफर भी था लेकिन
मैं चल न सका अरमान वक्त ने
कुचल दिये
हमसफर मिले बहुतेरे पर दिल
में न आ सके
दर खोल बैठे रहे ताउम्र न
आये न बुला सके
परंपरायें फर्ज निभाते रहे
रूके न वे कुछ कहें
दर्द पीते रहे हो बेशर्म ले
सांसें हम जीते रहे
जिस बाग को सजाया वह भी न
रहा हमारा
इंतजार आज भी हैं कोईआ सपनों
में रंग भरें
मिले गर आपको वे तो निशां
मेरा बता देना
पढ रहे हो मेरी दरखास सो
रखे तुमसे आस
हो साबित यहाँ आने की जायज
वजह मिली
एक बार मुस्कराने की ---
पथिक अनजाना
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