जब किसी के दिल पर किसी की
बात या उपेक्षा चोट करती हैं
प्रतिफल में लौटावे गर
मुस्कराहटें हार कर भी जीत होती हैं
चोटकर्ता हास्यपात्र खुद
बनता व जग में
असम्मानित होता हैं
लक्ष्य व्दारा फैंकी गई
मुस्कान व जनसाधारण से प्रीत पाता हैं
बदले की भावना तुम्हें
दुष्कर्मों व अशांति की राह चलाती हैं
नही जीत सकते तुम यह
तुम्हारी हताशा जगजाहिर कराती हैं
मान लो अपनी कमजोरी तो सुकर्मी भीड काँधे पर बिठाती हैं
यही प्रतिपक्ष को अशांति मिलती तुम्हें शांतिलोक ले
जाती हैं
माना चुप रहना सहना कायरता
पर यहाँ इंसा क्षणिक हारता है
एक क्रोधित रहे पर मिले
अनेक सहयोगी गर क्या बुरा सौदा हैं
पथिक अनजाना
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