विजय का मूल्य ---पथिकअनजाना –465 वीं पोस्ट
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कहते सब एहसान मान खुदा का जो देता सब कुछ
तुझे
क्या उचित हैं कि दे जरूरतें बदले में
खुशामदें लेता खुदा
गर नही देता खुशामदहीन इंसान को
जिन्दगी में कभी
तो खुदा करता क्या व्यापार जो खुशामद
के आधार पर
इसलिये क्या खुदा होता उपलब्ध किराये
से केन्द्रों पर
हर काम,विजय का मूल्य जहाँ
लाईसेन्सधारी लेते हैं
वक्त बीत जाता सुकर्म आ हाथ थामते
श्रेय ये पाते हैं
श्रमकणों से अर्जित आय खींच लेते पुण्यात्मा
कहलाते
चलो विचारें क्षणभर क्यों हम हो हताश
भटक जाते हैं
पथिक अनजाना
मित्रवर!गणतन्त्र-दिवस की ह्रदय से लाखों वधाइयां !
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी है !
आप की यह रचना मेरे विचारों का पोषण करती है | ईश्वर की निष्काम साधना का अभाव युग विनाश का एक कारण है !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जय भारत।
भारत माता की जय हो।