अस्पताल के हर गलियारे में नर्स घुमती नजर आती है
विशेष पोशाक पहने मुस्कान के साथ मरीज के पास जाती है
दिल में आशीषो को पाने की तमन्ना आँखों में प्रेम लिए आती है
मरीज के साथ कोई विशेष रिश्ता नहीं फिर भी सम्पूर्ण समर्पण की भावना दिखाती है
सेवा ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा ये सारे गुणों को अपना आभूषण बनाती है
इन सारे गुणों के साथ वह अपना हर अनमोल पल मरीज की सेवा में लुटाती है
मृत्यु रूपी रात्रि से जीवन रूपी खुबसूरत सवेरे की ओर ले जाती है
ऐसा करने के लिए वो एडी से चोटी तक का बल लगाती है
वह सोचती है कि उसे चाहिए ही कितना तन ढकने, पेट भरने, धुप, बारिश से बचने के अलावा
यही आत्म संतोष उसकी भक्ति और वो स्वंय सन्यासी बन जाती है
नर्स बनकर समाज को सेवा के साथ नेकी का पाठ पढाती है
बदले में इसी समाज से थोड़ी सी सम्मान कि लालसा जोड़े जाती है
इंसान कि तरह नजर आये मगर फ़रिश्ते का चरित्र दिखाती है
खुदा के पास रहने वाली खुशनसीब आत्मा बन जाती है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (09-01-2014) को चर्चा-1487 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'