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शनिवार, 4 जनवरी 2014

परवरिश --४४३ वी पोस्ट ------ पथिक अनजाना






                           परवरिश  --४४३ वी पोस्ट
     बेशकीमती लफ्ज जो दुनिया में हैं  वह परवरिश
     छोटा सा शब्द विशाल गहरा इतना कि थाह नही
     परिवारिश परिभाषित करना कठिन पर अमली हैं
     दुनियायी हर शै का वजूद तौला परवरिश से जाता
     परवरिश ही बताती किस दुनिया से इनका नाता हैं
     परिवार माध्यमों  की  विकट परीक्षा ये कहलाता हें
     धनार्जन  कठिन  पर बडा परवरिश कार्य हो जाता है
     अधर पर चलने जैसे, इंसा विशाल बाग मानो बोता हैं
     तुरन्त कुछ फल पाता कुछ दूर भविष्य हेतू बो सोता हैं
     खोया गर कहीं विवेक तो मरने बाद भी बदनाम होता हैं
      पथिकअनजाना

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