भैयाजी नमस्ते, क्या डपटा है आपने मीडिया को! सरकार का माल भी खायेंगे
और उस पर भौंकेंगे भी? नमकहराम कहीं के! भैया, जलनेवाले जलते ही रहेंगे, आप
तो बस ‘उत्तम प्रदेश’ में स्वर्ग उतारने में लगे रहो. सैफई की तरह हर गांव
को ‘इंदरसभा’ बना दो. जिन्हें मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों का दर्द ज्यादा
कोंच रहा है, वे अपने घर से रजाई-कंबल भिजवा दें. ई सब छोटा-छोटा बात पर आप कहां तक ध्यान देंगे. वैसे भी, मरनेवालों को
कौन बचा सकता है? बाबा तुलसीदास भी लिख गये हैं- हानि लाभु जीवनु मरनु जसु
अपजसु बिधि हाथ. चकवड़ साग छाप समाजवाद आप चकवड़ छाप नेताओं के लिए ही छोड़
दें. मार्क्स, लेनिन, माओ, लोहिया, जेपी, नेहरू के भक्त बहुत पड़े हैं,
आटा-दाल और नून, तेल, लकड़ी की बात करने के लिए. आप विदेश से पढ़-लिख कर
आये हैं, हमें पूरा यकीन है कि आप यूपी को भी देसी से विलायती बना देंगे
(भैया के बाबूजी, अब तो यूपी को ‘ऊपी’ कहना बंद कीजिए). यह मिशन जल्दी से
जल्दी पूरा हो इसलिए आपने कुछ मंत्री-विधायकों को शैक्षणिक टूर पर विदेश
भेजा है. ऊ लोग को बोलियेगा कि विदेश में लगे हाथ अगले सैफई महोत्सव के लिए कुछ
जोरदार आइटम भी पसंद कर लेंगे. भैया, देसी ठुमका बहुत देख लिया, अगली बार
‘बेली डांस’ जरूर होना चाहिए. रामपुर वाले खान साहब से कहियेगा, तुर्की गये
हैं तो देखेंगे जरूर और अगले साल के लिए सट्टा भी बांध लेंगे. सच्च
समाजवाद तो आप ही ला रहे हैं. गांव का लड़का-बच्च भी अब टैबलेट-लैपटाप चला
रहा है. सुनते हैं कि इंटरनेट पर सब ट्रिपुल एक्स फिलिम देखता है, जो
‘मलेट्टरी’ वाले चच्च के ट्रिपुल एक्स रम से भी जोर नशा चढ़ाता है.
गांववालों के नसीब में ई सब कहां था? बच्च लोग पढ़ने-लिखने के झंझट से
फारिग है और मास्टर साहब पढ़ाने के, मतलब डिग्री से है जो मिल ही जानी है.
आपने ‘भयमुक्त’ इम्तिहान का इंतजाम जो करा दिया है. बस एक काम और कीजिए, नौकरी में भी कंपटीशन खत्म करा दीजिए, जो आपके
समाजवाद का साथ दे उसे ही भरती करा दीजिए. अपना आदमी रहेगा, तभी न सरकार के
साथ पूरा कोऑपरेट करेगा. भैया जी, आपने इस कहावत को भी सही साबित किया है
कि ‘मुर्गा नहीं बोलेगा तो क्या सवेरा नहीं होगा?’ आपके अमर चाचा समझते थे
कि वह नहीं रहेंगे, तो आप सलमान-माधुरी को नचा ही नहीं पायेंगे. ऐसा थप्पड़
लगा है उनके गाल पे कि का कहें, बस मजा आ गया! भैया, आपको एक चुनावी वादा
याद दिलाना चाह रहे हैं. आपने कहा था कि माया सरकार ने ‘शाम की दवाई’ भी
महंगी कर दी है, दिन भर कामकाज से थके कार्यकर्ता शाम को थकान भी नहीं उतार
पा रहे हैं. ई वाला वादा जल्दी पूरा कीजिए, कम से कम दिल्लीवाला भाव तो
करवा ही दीजिए. बड़ी ठंड पड़ रही है.
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