काश: काँच खो जावे ---४५९ वीं पोस्ट ---पथिकअनजाना
देखते हैं करीबी से गुजरते हुये
हर इंसानी जीव को
मानो
कर रहे हैं कोई शोध कार्य इनके नजरियों पर
कल्पना
करते हैं हर इंसान ने मानो पहने चश्मा हों
काँच
सफ़ेद स्पष्टता काले काँच रहस्यमयी बनाते
काँचों
केपीछे से भेदती निगाहें घेरती छलपूर्ण बाँहें हों
रंग
बाद विशेषता कहीं स्वार्थमयी नजरों वाले काँच
कहीं
धूर्तता आडंबरी अपनत्व वाले काँच मिल जाते
कहीं
निस्वार्थ आत्मिक प्रेम से सरोबार करती निगाहें
परेशानी
पहचान न सके काँच के रंग व गुणों को हम
नही
क्या जी सकता इंसान, नैनों परबिना काँच लगाये
काश
! काँच खो जायें राह-ए-जिन्दगी आसान हो जायें
पथिक
अनजाना
http://pathic64.blogspot.com
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