विचारें गणतंत्र –पारदर्शिता या पासदर्शिता ?
आज हम आ खडे फिर इक चौराहे पर हैं
राह जिसमें मनाई हैं खट्टी मीठी बरसियाँ
दूजी पार के मुखौटे में छिपी पासदर्शिता
तीजी गणतंत्र में विशुद्ध पारदर्शिता की हैं
चौथी मुखौटा गणतंत्र मौजूद पासदर्शिता
गये गुजरे नही है इशारा न समझे आप
प्रतिनिधि वापिस बुलाने का हक भटका
मौजूदा सत्ता ने दिया गणतंत्र – झटका
संभलें वर्ना कथा भस्मासुर की न होवे
न भाटों को चाटो नही प्रलोभन तुम बाँटो
पुकारता गुलाम गणतंत्र, बेडियाँ तो काटो
जियो यार जिन्दगी हक गणतंत्र का बाँटो
पथिक अनजाना
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