नही समझ पाया मैं कभी मनुष्य हृद्य धुरी कैसे बन सकता हैं ?
पाठ शांति का दे इंसानों को र्निलोभी होने की सलाह दी जाती हैं
शांत ,र्निविचारी मनुष्य, तो पायेंगे पथ्थर मूर्तियों की दुनिया में
मुझे खिडकी से बाहर कभी आकाश कभी जमीन नजर आती हैं
हृद्य महसूस करता जानवरों में इंसा कभी इंसा जानवर होते हैं
प्रकृति की हर शै आन्तरिक हलचलों के निशां लगे हंसते ढोते हैं
मांग पाण्डित्य धन ऐश्वर्य इंसा, याद रावण की क्यों दिलाते हैं
जमी घूमती सौर गंगाये घूमती दिखता सब कुछ चलायमान हैं
परिवर्तन तो प्रकृति में घटता
नित्यप्रति नजर सबको आता हैं
इंसान को जीवन कुरूक्षेत्र में क्यों धुरी बन जाने को कहा जाता हैं
पथिक अनजाना
हमें जीवन के कुरुक्षेत्र में अर्जुन बनने को कहा जाता है, इसके लिये हमें हर वस्तु का मोह त्यागना होगा तभी तो जीवन युध्द को तत्पर होंगे।
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