बुजुर्गान भांप लेते दिल में तुम्हारे
जो छिपा हैं
बनावट चेहरे या जुबान की बेनकाब हो जाती
हैं
निगाहें हावभाव खुद तुम्हारेख्वाब जाहिर
करते हैं
नही जरूरत उन्हें पूछने की कर्म हाजरी
भरते हैं
ढोंग कितने करो ताड लेने वाले कहने से
डरते हैं
परिस्थितियों से विवश हो भीष्मजी जैसे करते
हैं
पथिक
अनजाना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपोस्ट को साझा करने के लिए आभार।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (19-01-2014) को तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर |
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