साहिल अपना जानो --पथिक अनजाना --४५५ वीं पोस्ट
गुजारतें हैं जिन्दगी हम जमीन पर आकर
सैलाब आकर कयामत को तबाह करते हैं
सांसें हमारी बंधी ताउम्र खुदाई
हुक्मों से
सैलाब भी तो खुदा के हुक्म में बंधे
होते हैं
दोष क्यों देते बैठ हम इन सैलाबों को
हैं
शह व मात के खेल में दोष खुदा का नही
हैं
कभी इंसानी सोच कभी खुदाई खरोंच बढे
जिन्दगी पर तभी सैलाबी फौज छा जाती
हैं
साहिल अपना जानो तो समझ राह आती हैं
पथिक अनजाना
http://pathic64.blogspot.com
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