निस्वार्थ सोच
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निष्कर्ष
ताउम्र गुजारने पर मैंने यही पाया
हैं
इंसानी जामा तो सिर्फ सोच की जिन्दगी होती हैं
बात,वारदात,चाल चलने से पहलेकर सब्र सोच ले
जन्म से
शरीर त्यागने तक साथ चलती सोच
सांस व सोच का गहरा सबंध
पर सोच पर हक हैं
न कर फिक्र मौके की दोगुना वक्त दे तू सोच ले
अतीत के दुष्कर्मों का भार तुम बोझ
छांट सकोगे
सकून निर्भयता के जीवन आधार निस्वार्थ सोच हैं
पथिक अनजाना
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