धर्मं की एक अपनी अलग ही कहानी
इसके ठेकेदारों ने अपने तरीके से बखानी
वास्तव में धर्म की परिभाषा समाज समझ न पाया
जो सीख पाया वही सभ्य समाज कहलाया
धर्म अच्छे बुरे कर्मो में भेद बताता है
सबको ईश्वर की संतान बनाता है
जिस ईश्वर का डर दिखाकर धर्म इंसान
को इंसानियत सिखाता है
उसी धर्म की आड़ में इंसान आपस में ही
लड़कर हैवानियत दिखाता है
धर्म और कर्म में कोई भेद नहीं होता है
मर्यादित कर्म ही धर्म का दूसरा रूप होता है
कोई बुराई नहीं इंसानियत को दिखाने में
इससे कोई बदलाव नहीं अपने धर्म निभाने में
धर्म की रक्षा करने में कर्म की रक्षा हो जाती है
ये बात इंसान के दिमाग से क्यों निकल जाती है
इसके ठेकेदारों ने अपने तरीके से बखानी
वास्तव में धर्म की परिभाषा समाज समझ न पाया
जो सीख पाया वही सभ्य समाज कहलाया
धर्म अच्छे बुरे कर्मो में भेद बताता है
सबको ईश्वर की संतान बनाता है
जिस ईश्वर का डर दिखाकर धर्म इंसान
को इंसानियत सिखाता है
उसी धर्म की आड़ में इंसान आपस में ही
लड़कर हैवानियत दिखाता है
धर्म और कर्म में कोई भेद नहीं होता है
मर्यादित कर्म ही धर्म का दूसरा रूप होता है
कोई बुराई नहीं इंसानियत को दिखाने में
इससे कोई बदलाव नहीं अपने धर्म निभाने में
धर्म की रक्षा करने में कर्म की रक्षा हो जाती है
ये बात इंसान के दिमाग से क्यों निकल जाती है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (05-01-2014) को तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धर्म और कर्म में कोई भेद नहीं होता है
जवाब देंहटाएंमर्यादित कर्म ही धर्म का दूसरा रूप होता है
कर्तव्य ही धर्म है
नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
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