.
ये बाद-ए-सबा है ,भरी ताज़गी है
फ़ज़ा में अजब कैसी दीवानगी है
निज़ाम-ए-चमन जो बदलने चला तो
क्यूँ अहल-ए-सियासत को नाराज़गी है
वो सपने दिखाता ,क्यूं बातें बनाता
ख़यालात में उस की बेचारगी है
बदल दे ज़माने की रस्म-ओ-रवायत
अभी सोच में तेरी पाकीज़गी है
दुआयें करो ये तलातुम से उबरे
गो मौजों की कश्ती से रंजीदगी है
वो वादे निभाता तो कैसे निभाता
वफ़ा में कहाँ अब रही पुख़्तगी है
क्यूँ दीवार-ए-ज़िन्दां से हो ख़ौफ़ ’आनन’
अगर मेरी ताक़त मेरी सादगी है
दीवार-ए-ज़िन्दां = क़ैदख़ाने की दीवार
तलातुम = सैलाब/बाढ़/तूफ़ान
-आनन्द.पाठक
09413395592
ये बाद-ए-सबा है ,भरी ताज़गी है
फ़ज़ा में अजब कैसी दीवानगी है
निज़ाम-ए-चमन जो बदलने चला तो
क्यूँ अहल-ए-सियासत को नाराज़गी है
वो सपने दिखाता ,क्यूं बातें बनाता
ख़यालात में उस की बेचारगी है
बदल दे ज़माने की रस्म-ओ-रवायत
अभी सोच में तेरी पाकीज़गी है
दुआयें करो ये तलातुम से उबरे
गो मौजों की कश्ती से रंजीदगी है
वो वादे निभाता तो कैसे निभाता
वफ़ा में कहाँ अब रही पुख़्तगी है
क्यूँ दीवार-ए-ज़िन्दां से हो ख़ौफ़ ’आनन’
अगर मेरी ताक़त मेरी सादगी है
दीवार-ए-ज़िन्दां = क़ैदख़ाने की दीवार
तलातुम = सैलाब/बाढ़/तूफ़ान
-आनन्द.पाठक
09413395592
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआ0 कविता जी
हटाएंसराहना के लिए आप का धन्यवाद
सादर
-आनन्द.पाठक
जवाब देंहटाएंक्यूँ दीवार-ए-ज़िन्दां से हो ख़ौफ़ ’आनन’
अगर मेरी ताक़त मेरी सादगी है\उम्दा पंक्तियाँ |
अच्छा लिखा है |
आ0 आशा जी
हटाएंउत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ
सादर
-आनन्द.पाठक