उत्सव व उत्साह में हमेशा नयापन होता है। हमारे शरीर में नयापन हर क्षण
हो रहा है, क्योंकि शरीर में हर अणु बदल रहा है। इसी तरह से शरीर के कोष
बदल रहे हैं। बचपन में मन वर्तमान में रहता है, इसलिए मन में ताजगी रहती
है, नयापन रहता है। स्मृति में फंसा हुआ मन भूत या भविष्य में डोलता रहता
है और नयापन खोने का आभास होता है। स्मृति मन के स्तर पर नएपन का अवरोध है।
क्योंकि प्राय: स्मृति नकारात्मक विचारों में उलझती है।सकारात्मक घटनाओं के साथ एक नकारात्मक घटना होने पर स्मृति नकारात्मक
विचार को ही अपनाती है। दु:ख, दर्द, पीड़ा आदि की पुरानी यादों में ही हम
उलझे रहते हैं। प्रकृति में परिवर्तन और नयापन निरंतर हो रहा है। भावनाएं, वातावरण,
दोस्त, प्रवृत्ति और हमारे आसपास सब कुछ निरंतर बदलता रहता है। आप इस
परिवर्तन को तभी अनुभव कर सकते हैं, जब अपने भीतर के उस केंद्र से जुड़े
रहते हैं, जो अपरिवर्तनशील है। वह केंद्र आत्मा (अर्थात आत्म-तत्व) है। बस
इसको जानने से जीवन में आनंद और पूर्णता आती है। अगर हम न भी जानें, तब भी
नयापन तो होगा ही, पर प्रकृति के उल्लास से हम वंचित रह जाएंगे। हमारी चेतना चिर-पुरातन होते हुए भी नित-नूतन है। नवीनता अनुभव करने के
लिए हमें लोभ, घृणा, द्वेष तथा ऐसे अन्य दोषों से मुक्त होना पड़ेगा। यदि
मन इन सभी नकारात्मकताओं में लिप्त है तो वह प्रसन्न तथा शांत नहीं रह सकता
और वह नएपन का आभास नहीं कर सकता। आप अपना जीवन आनंदपूर्वक नहीं बिता
सकते।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (05-01-2014) को तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'