मंच के सभी सदस्यों को
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनायें और नई उम्मीदों से नए दिवस का स्वागत
छोटी बहर में -एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूं
’मतला’ से इशारा साफ़ हो जायेगा ,बाक़ी आप सब स्वयं समझ जायेंगे
राह अपनी वो चलता गया
’आप’ से ’हाथ’ जुड़ता गया
मुठ्ठियाँ इन्क़लाबी रहीं
पाँव लेकिन फिसलता गया
एक सैलाब आया तो था
धीरे धीरे उतरता गया
जादूगर तो नहीं ,वो मगर
जाल सपनों का बुनता गया
एक चेहरा नया सा लगा
रंग वो भी बदलता गया
जब कि सूरज निकलने को था
उस से पहले क्यूँ ढलता गया?
जिस से ’आनन’ को उम्मीद थी
वो भरोसे को छलता गया ।
-आनन्द पाठक
09413395592
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (26-01-2014) को "गणतन्त्र दिवस विशेष" (चर्चा मंच-1504) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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६५वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
***आपने लिखा***मैंने पढ़ा***इसे सभी पढ़ें***इस लिये आप की ये रचना दिनांक 27/01/2014 को नयी पुरानी हलचल पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...आप भी आना औरों को भी बतलाना हलचल में सभी का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंएक मंच[mailing list] के बारे में---
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जल्दबाजी राय में अच्छी नही
जवाब देंहटाएंजलता रहेगा आंधियों में दिया।
बहुत सुन्दर १
जवाब देंहटाएं६५ वीं गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
लाजवाब गज़ल ... बधाई ...
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