सिर्फ पढ़ने या जानने से ज्ञान नहीं मिलता, उसे आचरण में अपनाने से मिलता है..जिस ज्ञान से चित्तशुद्धि होती है, वही यथार्थ ज्ञान है, बाकी सब
अज्ञान है। कोरे पांडित्य का क्या लाभ? पंडित को बहुत सारे शास्त्र, अनेक
श्लोक मुखाग्र हो सकते हैं, पर वह सब केवल रटने और दोहराने से क्या लाभ?
शास्त्रों में निहित सत्यों की प्रत्यक्ष उपलब्धि होनी चाहिए। जब तक संसार
के प्रति आसक्ति है, तब तक ज्ञानलाभ नहीं होगा।तथाकथित पंडित ब्रहम, ईश्वर, निर्विशेष सत्ता, ज्ञानयोग, दर्शन और
तत्वज्ञान आदि कितने ही गूढ़ विषयों की चर्चा करते हैं, किंतु उनमें ऐसों
की संख्या बहुत कम है, जिन्होंने इन विषयों की उपलब्धि की है।क्या धार्मिक ग्रंथ पढ़कर भगवद्भक्ति प्राप्त की जा सकती है? नहीं।
पंचांग में लिखा होता है कि अमुक दिन पानी बरसेगा, परंतु समूचे पंचांग को
निचोड़ने पर तुम्हें एक बूंद पानी भी नहीं मिलता। इसी प्रकार, पोथियों को
केवल पढ़ने से धर्मलाभ नहीं होता, उन्हें अपनाना पड़ता है।जो लोग थोड़ी पुस्तकें व ग्रंथ पढ़ लेते हैं, वे घमंड से फूलकर कुप्पा
हो जाते हैं। ग्रंथ ग्रंथ का काम न कर, ग्रंथि का काम करते हैं। यदि उन्हें
सत्य प्राप्ति के इरादे से न पढ़ा जाए, तो दांभिकता और अहंकार की गांठ
पक्की हो जाती है। लेकिन अभिमान-दांभिकता गरम राख की ढेरी के समान है, जिस
पर पानी डालने से सब पानी उड़ जाता है, यानी ऐसे ज्ञान का कोई लाभ नहीं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (31-01-2014) को "कैसे नवअंकुर उपजाऊँ..?" (चर्चा मंच-1508) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"क्या धार्मिक ग्रंथ पढ़कर भगवद्भक्ति प्राप्त की जा सकती है?" ...उत्तर है.... हाँ क्यों नहीं ...
जवाब देंहटाएं-----पठन-पाठन ..प्रथम सोपान है ...यदि आप पहला सोपान ही नहीं करेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे.....
---- अतः लिखा जाना चाहिए.......क्या धार्मिक ग्रंथ (केवल) पढ़कर (ही) भगवद्भक्ति प्राप्त की जा सकती है?....इसी को .... सिर्फ पढ़ना/लिखना परन्तु जानना/ समझना नहीं.. कहते हैं.....