मित्रों 11 जनवरी 2014 को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के जनता दर्शन में उमड़ी भीड़ और उसके बाद मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल द्वारा किए गए प्रदर्शन से मुझे एक कहानी याद आ गयी। इस कहानी को जब मैं इंटरमीडिएट में पढ़ता था तो मेरे नाना श्री ओंकार नाथ मिश्र जी सुनाया करते थे। उस समय मैं उस कहानी को महज आनंद लेने का माध्यम समझता था, पर आज की घटना को देख और सुनकर मुझे उस कहानी की पूरी स्क्रप्टि समझ में आ गयी। मुझे लगा कि वह कहानी नहीं बल्कि समाज में घटने वाली घटनाओं का एक संकेत था, जिससे शिक्षा प्राप्त करने की जरूरत थी। अब आपको ज्यादा इंतजार नहीं कराऊंगा, सीधे उस कहानी पर चलता हूं। मेरे नाना जी बताया करते थे कि एक बार जंगल के सभी पशु पक्षियों ने मिलकर बैठक की और जंगल के राजा शेर से नाराजगी जतायी। बैठक में पशु-पक्षियों ने तय किया कि शेर को राजा पद से हटा दिया जाए। उनके स्थान पर किसी दूसरे को राजा बनाया जाए। पशु-पक्षियों के इस विरोध पर शेर ने पुन: राजा का चुनाव कराने के लिए हामी भर दी। चुनाव हुआ। चुनाव में शेर के सामने एक बंदर चुनाव मैदान में उतरा और वह चुनाव जीत गया। चुनाव जीतने के बाद कुछ दिन तो सब ठीक-ठाक चलता रहा। एक दिन शेर ने बकरी के एक बच्चे को पकड़ लिया और एक पेड़ के नीचे जा बैठा। इसकी जानकारी होने पर जंगल के सभी पशु-पक्षी बंदर राजा के पास गये और समस्या बताई। बंदर राजा तुरंत पशु-पक्षियों के साथ मौके पर पहुंचे। पशु-पक्षियों को सान्त्वना प्रदान करने के लिए बंदर राजा उस पेड़ पर चढ़ गए, जिसके नीचे शेर बकरी के बच्चे को लेकर बैठा था। काफी देर तक बंदर राजा पेड़ के एक डाल से दूसारी डाल पर कूदते रहे। जब काफी देर हुई तो पशु-पक्षियों ने बंदर से कुछ उपाय करने को कहा तो बंदर ने जवाब दिया कि मेरे प्रयास में कोई कमी हो तो उसे बताइए। बकरी का बच्चा शेर नहीं छोड़ रहा है तो मैं क्या करुं। ठीक यही हाल आज केजरीवाल के जनता दर्शन कार्यक्रम में हुआ। इसे देखकर इतनी हंसी आई कि आप से उसे शेयर नहीं कर सकता। मित्रों मेरी कहानी से अगर आप सब को किसी प्रकार का ठेस लगे तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (12-01-2014) को वो 18 किमी का सफर...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1490
में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मुझे भी ऐसा ही लगा .......सटीक सुंदर कहानी ......
जवाब देंहटाएंthank you
हटाएंऊँट को पहाड़ के नीचे आने के बाद ही अपने कद का अहसास हो पाता है ! रोचक कहानी ! आभार !
जवाब देंहटाएंmany thanks.
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