कुर्सी की खातिर कब तक हमको कुर्बान करोगे
वो खून हमारा करते हें शह तुम्हारी पाके
वो जेलों मे हें पलते शाही बिरयानी खाके
इन राज्द्रोहियो का तुम कब तक सम्मान करोगे
कुर्सी की खातिर कब तक हमको कुर्बान करोगे
शांति की उस नगरी मे जब होते रहे धमाके
तुम सोते रहे भवन मे परदे रेशमी गिराके
जागो प्यारे मनमोहन कब तक आराम करोगे
कुर्सी की खातिर कब तक हमको कुर्बान करोगे
तुम चाहो तो इक पल मे उन्हें हरा सकते हो
इन आतंकी चूहों को धूल चटा सकते हो
अपने कर्तव्यो का न कब तक ध्यान करोगे
कुर्सी की खातिर कब तक हमको कुर्बान करोगे
................श्यामा अरोरा
वाह...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
पढ़कर आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सामयिक और सटीक अभिव्यक्ति !
latest post,नेताजी कहीन है।
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