मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

व्यंग्य विडंबन : - डॉ. मेहता वागीश



व्यंग्य विडंबन :    
                             -      डॉ. मेहता वागीश

             चैनल वालों की मौज है। यकीन न हो तो कहीं भी रिमोट घुमाके देख लीजिए। ऐसा इन्द्रलोक कहाँ मिलेगा। सभी मज़े में हैं। अन्दर भी और बाहर भी। तभी तो सार्वजनिक तौर पर कह रहे हैं -मजा नहीं दो गे !उम्र का कोई बंधन नहीं। थिरकते बदन ,मटकते कूल्हे ,अधखुली छतियां थरथराते होंठ ,धड़कते दिल ,बे  -चैन जफ्फियाँ ,उठती सीत्कारें ,बजती तालियाँ ,तबले पर पड़ती थापें और ड्रम की ताल पर खिसकते कपड़े। ये गया गुलाबी ,पीला भी गया ,ये गया लाल ,नीला भी गया ,ये गया हरा ,ये गया नारंगी। भगवे की की तो औकात ही क्या है !अब रह भी क्या गया है जिस्म पर। जिस्म का रंग ही तो बाकी है। वह भी उतरने को तैयार।



ऐसी जवान पीढ़ी भला है किसी देश में ?  नांच महासंग्राम छिड़ा है। कुछ नचनियां तो  संसद भी हो आये हैं।

कुछ ठहाके लगा आ रहें हैं.यहाँ सभी मटुकनाथ हैं। कितना प्रगतिशील लोकतंत्र है। कुछ भी अदृश्य नहीं ,कुछ

भी अश्रव्य  नहीं। सभी को आज़ादी है। सच्चा जनवाद है। जोड़ियाँ  बन रही हैं। स्वयंवर सज रहे हैं। फिर ऐसे

अवसर कहाँ?'बस नच बलिये '. कैसे भी नच.हाथ पाँव मारके नच.किसी टांग से नीचे निकलकर नच। सिर  को

आगे -पीछे ,ऊपर -नीचे करके नच। पर ,नच ज़रूर। यह तो नचने का आलमी (भू -मंडलीय )मुकाबला है।

इसमें किसी को फूहड़पन झलकता है तो सौ बार झलके। हमारी बला से! हम क्या कर सकते हैं। हम ठहरे

कलाकार। कला पर प्रतिबन्ध कैसा ?चाहे कैट वाक करें चाहे डाग वाक करें ,केमल वाक करें या फिर डंकी वाक


 हमारी मर्ज़ी। इसमें आपका क्या जाता है। ये ग्लोबल डांस है। चैनल पर चैनल है। स्वर्ग में बैठी अप्सराएं भी

चैनलों पर उतरने को आतुर हो रहीं हैं। कई तो वेश बदल के आ भी चुकी हैं। पर यहाँ आकर सब भौंचक्क हैं।

 ऐसा अलौकिक सौंदर्य देख कर तो अपने अप्सरा होने पर वे शर्मिन्दा हैं। मुनिगण न कहते थे कि देवता भी

भारत में आने को तरसते हैं। उन्हें तो झख मारकर आना ही पड़ेगा।  नहीं आयेंगे तो कहाँ जायेंगे। जब सारी

अप्सराएं यहाँ आकर नच बलिये करेंगी तो देवता स्वर्ग में बैठकर क्या चूल्हा फूंकेंगे। फिर वहां तो गैस भी नहीं

मिलती यहाँ ब्लेक पर तो मिल जाती है,भले ही सिलिंडर में कम हो। अब देवताओं का स्वर्ग में क्या काम है?

काम तो खैर उनका यहाँ भी नहीं है। वोट तो उनका है नहीं इन देवताओं से तो बांग्लादेशी ही अच्छे ,कम से कम

उनका वोट तो है।

प्रस्तुति :वीरू भाई (कैंटन ,मिशिगन )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें