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गुरुवार, 8 अगस्त 2013

जय भगवत गीते ! जय भगवत गीते ! हरि हिय कमल विहारिणि सुन्दर सुपुनीते !

जय भगवत गीते ! जय भगवत गीते !
हरि हिय कमल विहारिणि सुन्दर सुपुनीते !

कर्म सुमर्म प्रकाशिनि, कामासक्ति हरा ।
तत्वज्ञान विकाशिनि विद्या ब्रह्मपरा ॥


Yogi Anand Ji ने एक कड़ी साझा किया
जय भगवत गीते ! जय भगवत गीते !
हरि हिय कमल विहारिणि सुन्दर सुपुनीते !

कर्म सुमर्म प्रकाशिनि, कामासक्ति हरा ।
तत्वज्ञान विकाशिनि विद्या ब्रह्मपरा ॥

अति सुन्दर मनोहर। गुरु आनंदजी के मुख कमल का आभूषण है गीता। श्रृंगार है उनके तनबदन 

आत्मा का। 

श्रीमद भगवत गीता किसी सम्प्रदाय (धर्म विशेष )विशेष का ग्रन्थ नहीं है। यह तो जीवन के 

नियमों सम्पूर्ण मानवता का ग्रन्थ है गीता।


कार्य व्यापारों के सुचारू संचालन के लिए अनुदेश देने वाला ग्रन्थ है। सृष्टि के नियमों के संचालन का 

ग्रन्थ है गीता। कर्म फल की चिंता से मुक्त करती है हमें गीता। प्राणी तू कर्म करता जा फल की 

चिंता 

कर एनर्जी न गँवा।संकल्पों को व्यर्थ न कर। चिंता का सृजन कर उसका चर्वण न कर। मानसी 

सृष्टि 

है चिंता तुम्हारे मन की ही संतान है।  

यहाँ इस सृष्टि मंच पर आत्मा का आना जाना लगा रहता है। शरीर ही जन्म लेते  हैं मरते रहतें

 हैं। 

आत्मा नए वस्त्र पहन फिर कर्म में जुट जाती है।  समय चक्र से निबद्ध हो अपने पुराने  वस्त्र 

बदलती 

रहती है। यहाँ कुछ भी थिर (स्थिर ,जड़ )नहीं है ,इलेक्ट्रोन की तर्क कर्मशील है गतिमान है। 

ॐ शान्ति 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज शुक्रवार (09-08-2013) को मेरे लिए ईद का मतलब ग़ालिब का यह शेर होता है :चर्चा मंच 1332 ....में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सभी कर्म क्यू नहीं कर पाते कुछ लोग पागलपन में घूमते
    कई आश्रमों में क्या कर्म बदल दिया परिश्रम से भटका कर पैसा कमाने में लगा दिया?

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