भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
थी राम की ही प्रेरणा श्री राम की भक्ति |
तुम राम के सेवक थे राम तेरी थी शक्ति |
फिर उसी राम नाम को घर घर में गुन्जाओ
भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
तुमने बहाई राम नाम की मृदु धारा |
जिसने दिया था प्यासी मनुजता को सहारा |
फिर वही राम नाम की गंगा को बहाओ |
भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
जन मानस था तप्त जब दुखो की धुप से |
तुमने कराया परिचय उनका राम रूप से |
फिर सच्चा रूप राम का जनता को दिखाओ |
भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
देवो के देश में अनीति कैसी हो रही |
जाने कहाँ मनुजता मुहं छिपाए सो रही |
मानव को उसके धर्म की पहचान कराओ |
भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
हिन्दू न रह के हिन्दू ऊँच नीच हो गया|
कैसा ये झगडा भाइयो के बीच हो गया ?
प्रेम राम और लखन का फिर से याद कराओ |
भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
फिर आ जाये काश वो समय जो बीता |
हर पुरुष बने राम और नारी फिर सीता |
मर्यादा का पाठ हमको फिर से पढाओ |
भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
हर मंत्री बने नेक और राजा रहे सजग |
दिल एक हो भले ही वेश भूषा हो अलग |
एक देश एक भूमि है जन जन को बताओ |
भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
देखा है हमने सपना फिर से राम राज का |
लेकिन बड़ा गलत है ये दौर आज का |
तुम स्वप्न ये हमारा साकार कराओ |
भटकी हुई जनता को सही राह दिखाओ |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल बृहस्पतिवार (15-08-2013) को "जाग उठो हिन्दुस्तानी" (चर्चा मंच-अंकः1238) पर भी होगा!
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'