आज भी कई
होते चीरहरण
कहाँ हो कृष्ण
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रही चीखती
क्यों नहीं कोई आया
उसे बचाने
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निर्ममता से
तार-तार इज्ज़त
करें वहशी
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हुआ वहशी
खो दी इंसानियत
क्यों आदमी ने
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तमाम भय
असुरक्षित हम
कैसा विकास
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कैसी ये व्यथा
क्यों रहे जानवर
पढ़-लिख के
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वामा होने की
कितनी ही दामिनी
भोगतीं सज़ा
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बेबस नारी
अजीब-सा माहौल
कैसा मखौल
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ओ रे मानव
कई युग बदले
हुआ ना सभ्य
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ओ रे मानव़, युग बदले हुआ ना सभ्य ।
जवाब देंहटाएंबहुतत सही कहा ।
सही कहा ।
जवाब देंहटाएंमानव = स्त्री + पुरुष .... कोइ सभ्य न हुआ .. फिर क्या कहा जाय ...किसे दोष दें ...जब सभ्य ही नहीं हुआ तो युग कहाँ बदले....
जवाब देंहटाएंAlbert Einstein---ने क्या नया कहा .... भारतीय शास्त्रीय ज्ञान में सदा ही कहा गया है कि ....यह संसार सपन की माया ...मोक्ष हेतु जीले तू प्राणी....
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