श्याम स्मृति-१६ –परम्परा ..
परम्पराएं सीडियां हैं प्रगति की, सदा पालन योग्य, अनुभव व ज्ञान के भण्डार ... परन्तु सीडियां चढने हेतु होती हैं, आगे बढ़ने हेतु | ज्ञान कोई स्थिर जलतल नहीं अपितु गतिशील समय है मानवता का प्रगति-पथ है, पथ दीप है जो आगे चलना सिखाता है नवीन राहें दिखाता है | परंपरा के नाम पर रूढ़िवादिता, जड़ता, अप्रगतिशीलता मानवता के प्रति अक्ष्म्य अपराध है |
आजकल... सदा से ही समाज के सर्वोच्च स्तर पर स्थित साहित्य जगत में भी यह परम्परा के नाम पर रूढ़िवादिता के दर्शन हो रहे हैं | वेद ही अंतिम सत्य है.... सिर्फ सनातनी छंदों में ही कविता करें.... छंद मुक्त कविता ने कविता की अत्यंत हानि की है ... आदि कथन प्राय: सुनने को मिलते हैं | परन्तु हम भूल जाते हैं कि वेद स्वयं नेति-नेति कहते हैं...अर्थात नै इति ..यह अंत नहीं है ..... आसमां और भी हैं.....|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (04-08-2013) के दादू सब ही गुरु किए, पसु पंखी बनराइ : चर्चा मंच 1327
में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी....
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