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सोमवार, 26 अगस्त 2013

मीराबाई :साधौ कर्मन की गति न्यारी

मीराबाई :साधौ कर्मन की गति न्यारी 

निर्मल नीर दियो नदियन  को ,सागर कीन्हों खारी ,

उज्जवल बरन दीन्हीं बगुलन को ,कोयल कर दीन्हीं  कारी।

मूरख को तुम ताज  दियत हो ,पंडित फिरै ,भिखारी। 

सुन्दर नैन मृगा को दीन्हीं ,वन वन फिरै उजारी। 

सूर श्याम मिलने की आशा ,छिन  छिन  बीतत भारी। 

मीरा कह प्रभु गिरधर नागर ,चरण कमल बलिहारी। 


व्याख्या :मीरा कह रहीं हैं कर्मों की गति बड़ी विचित्र है। 

अपने हाथ में व्यक्ति के कुछ नहीं है जो जैसा कर्म 

करेगा वैसा फल पायेगा। 

कर्मों की गति का रंग तो देखिये -जो नदी गर्मी में सूख जाती है बरसात में ही जिसे थोड़ा सा रस प्राप्त होता है। जिसे अपनी गति बनाए रखने के लिए भी वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। ईश्वर ने उसके कर्मों को मिठास से भर दिया है। और जिस सागर की विराटता का छोर नहीं है जिसे पार करना अलंघ्य है दुष्कर है जो एक तरह से परमात्मा के अन्नत गुण का भी प्रतीक है उसकी विराटता का दंभ उसे खारा करके लुप्त कर दिया है। 

प्रकृति ने कैसी रचना कर्मों के हिसाब से की है :कपटी बगुले को सुन्दर बना दिया और कानों में रस घोलने वाली सुकंठी कोयल को काला बना दिया। निर्बुद्ध को राजा बना दिया जिसको राज पाट  का कुछ ज्ञान भी नहीं है और पंडित ग्यानी भीख मांगते डोल  रहे हैं। 

बगुला तो मक्कारी का प्रतीक है। कपट पूर्ण  तरीके से एक टांग पर  खडा हो जाता है मछली को देखते ही उसे चट कर जाता है। ऐसे कपट पूर्ण व्यवहार करने वाले को ईश्वर ने श्वेतना प्रदान की है। और जो मीठी तान सुनाके सबका मन हर लेती है उस सुकंठी कोकिला को कृष्ण मुख बना दिया है। 

यहाँ  कर्म शब्द परमात्मा की प्रकृति का भी प्रतीक है।

मृग बे -चारा अपने बड़े बड़े नैन खोलके निर्जन वनों में मारा मारा फिर रहा है जहां उसके सौन्दर्य को निहारने वाला कोई नहीं है। आखिर इतनी सुन्दर आँखें देने  का मतलब क्या हुआ फिर जहां देखने वाला ही कोई नहीं इन सुन्दर  आँखों को। 

मीरा कहतीं हैं मीरा के स्वामी तो वही गिरधर गोपाल त्रिभंगी हैं  जिनकी प्रकृति की कोई टोह नहीं ले पाता है। मीरा उन्हीं के श्री चरणों की कमल चरणों  की दासी हैं ।  

ॐ शान्ति 

  1. Udho Karman Ki Gati Nyari - Shobha Gurtu | Bhakti Mala | Indian Classical Vocal

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