अपनी ही
पूँछ को
मुँह में
भर लेने की
पवित्र
इच्छा लिए
पागल
कुत्ते की भांति
दौड़ता
रहता है
आज का आदमी
घूमता
रहता है गोल-गोल
जैसे
दौड़ती रहती है
सेकण्ड की
सुईं
घड़ी के
वक्ष पर
रात-दिन.
मित्रों! आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
आज का आदमी
जवाब देंहटाएंघूमता रहता है गोल-गोल
जैसे दौड़ती रहती है
सेकण्ड की सुईं
घड़ी के वक्ष पर
रात-दिन.
बहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब -नेताओं की तरह कुत्ताया हुआ है आदमी।आदमी को दुलत्ती मारता है आदमी।ॐ शान्ति। बढ़िया सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (04-08-2013) के दादू सब ही गुरु किए, पसु पंखी बनराइ : चर्चा मंच 1327
में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत खूब कहा .....आज का आदमी
जवाब देंहटाएंघूमता रहता है गोल-गोल
जैसे दौड़ती रहती है
सेकण्ड की सुईं
घड़ी के वक्ष पर
रात-दिन.|