लयबद्ध अगीत छंद ....
लयबद्ध अगीत छंद अगीत काव्य का लयबद्ध अतुकांत गीत है जो सात से १० पंक्तियों में होता है, गति, लय व गेयता आवश्यक हैं एवं प्रत्येक पंक्ति में १६ निश्चित मात्राएँ होती हैं| डा श्याम गुप्त द्वारा २००७ में प्रणीत यह छंद सर्वप्रथम उनकी पुस्तक गीति विधा में महाकाव्य "प्रेमकाव्य " में प्रेम भाव खंड के अध्याय आठ -प्रेम-अगीत में प्रयोग किया गया था |
उदहारण-----
तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"
श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था
तेरे गीत सजा मेरा मन |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |
तेर मन की, नर्म छुअन को,
बैरी मन पहचान न पाया,
तेरे तन की तप्त चुभन को,
मैं था रहा समझता माया |
तुमने क्यों न मुझे समझाया,
अब बैठा यह सोच रहा हूँ |
ज्ञान ध्यान तप योग धारणा ,
में, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो माया संभ्रम है,
यूं ही हुआ पराया तुमसे |
लयबद्ध अगीत छंद अगीत काव्य का लयबद्ध अतुकांत गीत है जो सात से १० पंक्तियों में होता है, गति, लय व गेयता आवश्यक हैं एवं प्रत्येक पंक्ति में १६ निश्चित मात्राएँ होती हैं| डा श्याम गुप्त द्वारा २००७ में प्रणीत यह छंद सर्वप्रथम उनकी पुस्तक गीति विधा में महाकाव्य "प्रेमकाव्य " में प्रेम भाव खंड के अध्याय आठ -प्रेम-अगीत में प्रयोग किया गया था |
उदहारण-----
तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"
श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था
तेरे गीत सजा मेरा मन |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |
तेर मन की, नर्म छुअन को,
बैरी मन पहचान न पाया,
तेरे तन की तप्त चुभन को,
मैं था रहा समझता माया |
तुमने क्यों न मुझे समझाया,
अब बैठा यह सोच रहा हूँ |
ज्ञान ध्यान तप योग धारणा ,
में, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो माया संभ्रम है,
यूं ही हुआ पराया तुमसे |
श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था
जवाब देंहटाएंतेरे गीत सजा मेरा मन |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |
बहुत सुंदर ।
धन्यवाद आशा जी....
हटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंधन्यावाद अशोक जी....
हटाएंज्ञान ध्यान ताप योग धारणा ,
जवाब देंहटाएंमें, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो माया संभ्रम है,
यूं ही हुआ पराया तुमसे |.................sundar hai ...badhaai ......ताप ke sthaan par तप padhnaa adhik shreyashkar prateet ho rahaa hai .....!!
सही कहा भावना जी...यह तप ही है.... प्रिंटिंग त्रुटि है ....धन्यवाद...
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