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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

तेरे मन की, नर्म छुअन को...लयबद्ध अगीत ..... डा श्याम गुप्त ......

                                                       लयबद्ध अगीत छंद ....


                लयबद्ध अगीत छंद अगीत काव्य का  लयबद्ध अतुकांत गीत है जो सात से १० पंक्तियों में होता है, गति, लय व गेयता आवश्यक हैं  एवं प्रत्येक पंक्ति में १६ निश्चित मात्राएँ होती हैं|  डा श्याम गुप्त द्वारा २००७ में प्रणीत यह छंद सर्वप्रथम उनकी पुस्तक गीति विधा में महाकाव्य "प्रेमकाव्य " में प्रेम भाव खंड के अध्याय आठ -प्रेम-अगीत  में प्रयोग किया  गया  था  |
उदहारण-----

तुम जो सदा कहा करती थीं 
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों 
मैंने  तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"  

श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था 
तेरे गीत सजा मेरा मन  |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान  हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले  अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |

तेर मन की, नर्म छुअन को,
बैरी मन पहचान न पाया,
तेरे तन की तप्त चुभन को,
मैं था रहा समझता माया |
तुमने क्यों न मुझे समझाया,
 अब बैठा यह सोच रहा हूँ |
ज्ञान ध्यान तप योग धारणा ,
में, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो माया  संभ्रम है,
यूं  ही  हुआ  पराया तुमसे |

6 टिप्‍पणियां:

  1. श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था
    तेरे गीत सजा मेरा मन |
    प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
    पतझड़ सा वीरान हो गया |
    जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
    धुंधले अर्ध-मिटे चित्रों की ,
    कला-वीथिका एक पुरानी |

    बहुत सुंदर ।

    जवाब देंहटाएं
  2. ज्ञान ध्यान ताप योग धारणा ,
    में, मैंने इस मन को रमाया |
    यह भी तो माया संभ्रम है,
    यूं ही हुआ पराया तुमसे |.................sundar hai ...badhaai ......ताप ke sthaan par तप padhnaa adhik shreyashkar prateet ho rahaa hai .....!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा भावना जी...यह तप ही है.... प्रिंटिंग त्रुटि है ....धन्यवाद...

      हटाएं