श्याम स्मृति-२१ .......ईश्वर की आवश्यकता
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आखिर हमें उस ईश्वर की आवश्यकता ही क्या है जो अतनी सुन्दर दुनिया या समाज को त्याग कर मिले| ईश्वर की आवश्यकता उन्हें है जो ईश्वर के अभाव में दुखी हैं| यदि कोई संसार में रहकर, संसार को पाकर, संसार में लिप्त रहकर प्रसन्न है तो उसे ईश्वर की कोई आवश्यकता नहीं है | जो सारा संसार पाकर दुखी नहीं है उसे भी ईश्वर की कोई आवश्यकता नहीं है | सिर्फ समझना यह है कि हैं क्या वे सुखी हैं |
हमें ईश्वर हर स्थान पर, हर पल प्राप्य है परन्तु संसार में सुखपूर्वक उलझे रहने के कारण उसकी आवश्यकता व उपस्थिति अनुभव नहीं करते| नास्तिक कहते हैं कि वे ईश्वर को नहीं मानते अपितु एक स्वचालित व्यवस्था की सत्ता है जो विश्व को चलाती है .....वही तो भक्त जनों का ईश्वर है | और ईश्वर को न मानना भी तो उसके अस्तित्व का मन में होना ही है |
वो कहते हैं कि ईश्वर कहीं नहीं है |
कभी किसी ने कहीं देखा नहीं है
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मैं कहता हूँ ज़र्रे ज़र्रे में है काबिज़-
बस खोजने में ही कमी कहीं है
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