श्याम स्मृति ----आस्था व उसकी अभिव्यक्ति......
पूजा -प्रार्थना -मंदिर ... आस्था का विषय है ....आस्था एक व्यक्तिगत व समाजगत मनोवैज्ञानिक स्थिति है जो मनुष्य के मन में आत्मविश्वास उत्पन्न करती है । स्वयं पर निष्ठा रखना सिखाती है कि... यदि मैंने अपना कार्य पूर्ण निष्ठा व श्रम से किया है तो आगे आप को ( ईश्वर, दैवीय पीठ, देवस्थान आदि श्रृद्धा के स्थान ) समर्पित, अब जो भी हो । तभी तो सामान्यत: अपना कार्य सिद्ध न होने पर भी सामान्यजन की श्रृद्धा कम नहीं होती । वह भगवान को व अन्य को दोष न देकर अपने कर्मों की कमी व भाग्यफल को मानकर पुनः सहज भाव में आगे अपने कार्य में लग जाता है ।'
मन में आस्था रखना भी उचित है ..आवश्यक नहीं कि पूजा-पाठ किया ही जाय | परन्तु आस्था का व्यक्त होना भी आवश्यक व महत्वपूर्ण है, इससे पीछे आने वाले व अन्य लोग प्रभावित, उत्साहित व प्रेरित होते हैं ।
मन में आस्था रखना भी उचित है ..आवश्यक नहीं कि पूजा-पाठ किया ही जाय | परन्तु आस्था का व्यक्त होना भी आवश्यक व महत्वपूर्ण है, इससे पीछे आने वाले व अन्य लोग प्रभावित, उत्साहित व प्रेरित होते हैं ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (25-08-2013) को पतंग और डोर : चर्चा मंच 1348
में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर सार्थक प्रेरक विचार आभार डॉ साहब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वीरेन्द्र जी एवं शास्त्री जी....
जवाब देंहटाएंकर्म और कर्म फल का सिद्धांत बहस का ,प्राय: लोग दोहरी विचारधारा रखते है , जिसे दोमुंहापन भी कहा जा सकता है। मसलन अच्छा हुआ तो "भगवान की कृपा से ", बुरा हो गया तो "भाग्य का दोष" है। कभी आपने सुना है बुरा हुआ तो भगवाकी कृपा से और अच्छा हुआ तो भाग्य से ? कर्म फल मिलता है यह सही है तो रावण की सेना और कौरवो की सेना का नाश हुआ परन्तु धर्म पक्ष राम की सेना और पांडवो की सेना का भी तो नाश हुआ फिर धर्म की विजय कैसे हुई ?
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