मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

शनिवार, 24 अगस्त 2013

श्याम स्मृति ---आस्था व उसकी अभिव्यक्ति.....डा श्याम गुप्त....



                          श्याम स्मृति ----आस्था  उसकी अभिव्यक्ति......



                        पूजा -प्रार्थना -मंदिर ... आस्था का विषय है ....आस्था एक व्यक्तिगत समाजगत  मनोवैज्ञानिक स्थिति है जो मनुष्य के मन में आत्मविश्वास उत्पन्न करती है   स्वयं पर निष्ठा रखना सिखाती है  कि... यदि मैंने अपना कार्य पूर्ण निष्ठा श्रम से किया है तो आगे आप को ( ईश्वर, दैवीय पीठ, देवस्थान आदि श्रृद्धा के स्थान )  समर्पितअब जो भी हो   तभी तो सामान्यत: अपना कार्य सिद्ध होने पर भी सामान्यजन की श्रृद्धा कम नहीं होती वह भगवान को अन्य को दोष देकर  अपने कर्मों की कमी भाग्यफल को मानकर पुनः सहज भाव में आगे अपने कार्य में लग  जाता है '
           
मन में आस्था रखना भी उचित है ..आवश्यक नहीं कि पूजा-पाठ किया ही जाय |     परन्तु  आस्था का व्यक्त होना भी आवश्यक   महत्वपूर्ण हैइससे पीछे आने वाले अन्य लोग प्रभावित, उत्साहित प्रेरित  होते हैं

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (25-08-2013) को पतंग और डोर : चर्चा मंच 1348
    में "मयंक का कोना"
    पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सार्थक प्रेरक विचार आभार डॉ साहब।

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद वीरेन्द्र जी एवं शास्त्री जी....

    जवाब देंहटाएं
  4. कर्म और कर्म फल का सिद्धांत बहस का ,प्राय: लोग दोहरी विचारधारा रखते है , जिसे दोमुंहापन भी कहा जा सकता है। मसलन अच्छा हुआ तो "भगवान की कृपा से ", बुरा हो गया तो "भाग्य का दोष" है। कभी आपने सुना है बुरा हुआ तो भगवाकी कृपा से और अच्छा हुआ तो भाग्य से ? कर्म फल मिलता है यह सही है तो रावण की सेना और कौरवो की सेना का नाश हुआ परन्तु धर्म पक्ष राम की सेना और पांडवो की सेना का भी तो नाश हुआ फिर धर्म की विजय कैसे हुई ?

    जवाब देंहटाएं