मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

रविवार, 25 अगस्त 2013

न माँ बँट जाए

चिल्लाओ मत इतना;
 कान के पर्दे फट जाए । 
हिन्दुस्तान वतन है अपना;
 आपस में न माँ बँट जाए ॥ 
***************************
एक मुसलमा ,हिन्दू एक;
 एक हिंदुस्तान वहाँ है। 
एक गुलाबी बाग़ वह;
 नेक हर इन्सान जहाँ है ॥
************************ 
एक काफिर है काफी;
 जो बंदा न ईमान का  । 
एक दोस्त जो दुआ माँगे;
 प्यारा है भगवान् का ॥ 
************************
छोड़ दो उस पगडण्डी  को;
 जिसपे लाख हो काँटे  । 
कदम-कदम पे लहू ले ;
टुकडो में गाँव बाँटे  ॥ 
***********************
आओ मिलकर साथ रहें;
 रहेगा अपना जहां सलामत । 
मत काटो अपने हाथों को ;
अपने हाथों अपनी किस्मत ॥ 
********************************
        पोएम श्रीराम

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. अर्थ और भाव सौन्दर्य पूर्ण बढ़िया रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर प्रस्तुति । माँ न बांटें हम ।

    जवाब देंहटाएं