चिल्लाओ मत इतना;
कान के पर्दे फट जाए ।
हिन्दुस्तान वतन है अपना;
आपस में न माँ बँट जाए ॥
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एक मुसलमा ,हिन्दू एक;
एक हिंदुस्तान वहाँ है।
एक गुलाबी बाग़ वह;
नेक हर इन्सान जहाँ है ॥
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एक काफिर है काफी;
जो बंदा न ईमान का ।
एक दोस्त जो दुआ माँगे;
प्यारा है भगवान् का ॥
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छोड़ दो उस पगडण्डी को;
जिसपे लाख हो काँटे ।
कदम-कदम पे लहू ले ;
टुकडो में गाँव बाँटे ॥
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आओ मिलकर साथ रहें;
रहेगा अपना जहां सलामत ।
मत काटो अपने हाथों को ;
अपने हाथों अपनी किस्मत ॥
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पोएम श्रीराम
कान के पर्दे फट जाए ।
हिन्दुस्तान वतन है अपना;
आपस में न माँ बँट जाए ॥
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एक मुसलमा ,हिन्दू एक;
एक हिंदुस्तान वहाँ है।
एक गुलाबी बाग़ वह;
नेक हर इन्सान जहाँ है ॥
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एक काफिर है काफी;
जो बंदा न ईमान का ।
एक दोस्त जो दुआ माँगे;
प्यारा है भगवान् का ॥
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छोड़ दो उस पगडण्डी को;
जिसपे लाख हो काँटे ।
कदम-कदम पे लहू ले ;
टुकडो में गाँव बाँटे ॥
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आओ मिलकर साथ रहें;
रहेगा अपना जहां सलामत ।
मत काटो अपने हाथों को ;
अपने हाथों अपनी किस्मत ॥
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पोएम श्रीराम
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंlatest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अर्थ और भाव सौन्दर्य पूर्ण बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति । माँ न बांटें हम ।
जवाब देंहटाएंभारत माता कभी नहीं बंटेगी.....................
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