बहुत समय बाद कुछ लिखना चाहा
तो कलम की जगह अपना मोबाइल उठायाज़िन्दगी की खिटपिट और मोबाइल की पिट पिट से तंग
बस कुछ शब्द ही जोड़ पाया
भौतिकता में उलझी ज़िन्दगी पे खुद से कई सवाल किए
और अपने ही सवालों के आगे खुद को निरुत्तर पाया
मन ढूँढ रहा था कलम की खुशबू
और कोस रहा था मन ही मन तकनीक को भी
झुँझलाकर मैंने तैयारी कर ली सोने की
मोबाइल को लगाया साइलेंट मोड पर
पर ये मन लगा रहा अपने उधेड़बुन में
कि आखिर कलम की वो खुशबू कहाँ गयी ?
तकनीकी युग के कुछ ऐसे प्रभाव भी होते हैं
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना
अच्छी उधेड़-बुन है.....
जवाब देंहटाएंकलम की खुशबू मौजूद है, मुलाहिजा किया जाए
अंधी दौड़ में समय की कमी को न कोसा जाए
लिखने के लिए कलम का ही प्रयोग हो श्याम -
तकनीक का प्रयोग सिर्फ तकनीकी में किया जाए
सुन्दर है। ॐ शान्ति।
जवाब देंहटाएंकलम की खुश्बू ,विवेक भी गायब है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर है। ॐ शान्ति।
जवाब देंहटाएंकलम की खुश्बू ,विवेक दोनों गायब है।
भाषा वर्तनी खाने लगी है
मोबाइल की नै वर्तनी -
व्याकरण भुलाने लगी है।
शेक्स्पीयर की आत्मा चिल्लाने लगी।
अंग्रेजी-
अब हिंगलिश से भी आगे जाने लगी है