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सोमवार, 26 अगस्त 2013

कागा काको धन हरे ,कोयल काको देय , मीठे बचन सुनाय के ,जग अपनों करि लेय।

कागा काको धन  हरे ,कोयल काको   देय  ,

    मीठे बचन सुनाय के ,जग अपनों करि  लेय। 

कोयल मीठे बोल बोलकर सबका मन मोह लेती है हालाकि किसी को कुछ (धन राशि ) देती नहीं है। कौवा भी किसी का   धन चोरी नहीं करता है फिर भी कर्कशा कहलाता है। मीठा गाने वाली लता मंगेशकर  कंठ कोकिला कहलाती हैं .कोयल बोलती है तो लगता है वातावरण को शुद्ध कर रही है मंगल ध्वनी से संस्कृत के श्लोकों की तरह ,माहौल को संगीत के स्वरों से भर देती है कोयल। और आजकल के कई दुर्मुख बोलते हैं तो लगता है कौवा कोँ कों कर रहा है।  

हर कोई सुनना चाहता है सांगीतिक ध्वनि ,कर्कश बोल कोई नहीं सुनना चाहता है। हालाकि जाति  वरन दोनों का एक है। दोनों कृष्ण मुख हैं। काले हैं। मादा कक्कू ही कौवी के अंडे  भी सेती है।किम्वदंती है सत्य भी है कौवा घोंसला नहीं बनाता है कौवी अपने अंडे कोयल के घोंसले में जाके देती है। ठीक उससे पहले कौवा नर कक्कू को लड़ाई में उलझा लेता है। 

काग परिवार का पूरा कुनबा ही बदमाश होता है जब कोयल के बच्चे अण्डों से बाहर निकलते हैं तब उसी घोंसले में रखे कौवी के बच्चे उन्हें एक एक करके बाहर फैंक देते हैं। प्रजा तंत्र में नेताओं की औलाद भी यही कर रही है।    






    

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