पाने को आतुर रहतें हैं खोने को तैयार नहीं है
जिम्मेदारी ने मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही.
साझा करने को ना मिलता , अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही .
कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी है
जैसा देखा बैसी बातें .जग की अब ये रीत हो रही ...
अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही
क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
जिम्मेदारी ने मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही.
साझा करने को ना मिलता , अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही .
कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी है
जैसा देखा बैसी बातें .जग की अब ये रीत हो रही ...
अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही
क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
अक्सर तन्हाई जीत जाती है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, सुन्दर
अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज शुक्रवार (02-08-2013) को सुना लतीफा पाक ने, कैप्टन सौरभ क़त्ल : चर्चा मंच 1325 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks Guruji.
हटाएंस्वार्थ और प्रीत ,दोनों ही दीखते है परन्तु प्यार की अलग भाषा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सादर
कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी है
जवाब देंहटाएंजैसा देखा बैसी बातें .जग की अब ये रीत हो रही ...
---क्या खूब कहा है....अति सुन्दर .....
----पेश है ...
कुछ भी कहदो सब चलता है अब तो बस यह रीति होरही
धन से धन की छल से छल की यारो मैत्री खूब हो रही |