ऐ कलम ! अब छेड़ दो तुम नव तराने ,
पीर दिल की दर्द के नव आशियाने |
आसमानों की नहीं है चाह मुझको ,
मैं चला हूँ बस जमीं के गीत गाने ||
आज क्यों हर ओर छाई हैं घटाएं ,
चल रहीं हर ओर क्यों ये आंधियां |
स्वार्थ लिप्सा दंभ की धूमिल हवा में ,
लुप्त मानवता हुई है कहाँ जाने ||
तुम करो तो याद कुछ दायित्व अपना ,
तुम करो पूरा सभी दायित्व अपना |
तुम लिखो हर बात मानव के हितों की,
क्या मिलेगा भला प्रतिफल, राम जाने ||
तुम मनीषी और परिभू स्वयंभू हो ,
तोड़ कारा सभी वर्गों की, गुटों की |
चल पड़ो स्वच्छंद नूतन काव्य पथ पर,
राष्ट्र हित उत्थान के लिखदो तराने ||
हर तरफ समृद्धि-सुख की ही धूम है,
नव-प्रगति, नव साधनों की धूप फ़ैली |
चाँद-तारों पर जा पहुंचा आदमी है,
रक्त-रंजित धरा फिर भी क्यों, न जाने ?
व्यष्टि सुख में ही जूझता हर आदमी,
हित समष्टि न सोच पाता आदमी अब |
देश के अभिमान, जग सम्मान के हित,,
देश के उत्थान के लिख दो तराने ||
राष्ट्र-हित सम्मान के लिख दो तराने,
आज नव-उत्थान के लिख दो तराने |
तुम लिखो तो बात मानव के हितों की,
फल व प्रतिफल,तुम न सोचो, राम जाने ||
मैं चला हूँ इस जमीं के गीत गाने|
पीर दिल की दर्द के नव आशियाने |
ऐ कलम ! अब छेड़ दो तुम नव तराने ||
हमारी सच्ची आज़ादी तब होगी
जब हमारा प्यारा भारत
भ्रष्टाचार, अनैतिकता से मुक्त होगा
बहुत सुंदर ओजस्वी कविता ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशाजी...
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज बृहस्पतिवार (15-08-2013) को "जाग उठो हिन्दुस्तानी" (चर्चा मंच-अंकः1238) पर भी होगा!
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद का मौजू गीत तिरंगे के रंग लिए। जीवन का वृत्तांत लिए आज के स्वार्थी आदमी के।
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 16.08.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्रीजी, ब्रिजेश जी , वीरेन्द्र जी एवं आशा जी....
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