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रविवार, 4 अगस्त 2013




                             

वह सुरा - पात्र  दो दयानिधे,जब मूड बने तब भर जाए |
है आठ लार्ज, कोटा अपना,बिन - मांगे  पूरा कर जाए |

प्रातः   उठते ही हैम - चिकन,
फ्राइड फिश से हो ब्रेकफास्ट |
हो    मट्न लंच में हे स्वामी,
मैं बटरचिकन से करूं लास्ट |

मिलजाय डिनर बिरयानी का,संग चिकनसूप भरकर आए |
है आठ लार्ज,   कोटा अपना,बिन मांगे,     पूरा कर जाए |

हो आमलेट से, दिवस शुरू,
तीखे कैचप के  साथ प्रभो |
फ्राईफिश, सींक कवाब मिले,
जब करूं  लंच मैं महाप्रभो |

बस  मुर्गतन्दूरी, मटन - करी,नित नैक्स्टडिनर लेकर आए |
है आठ लार्ज,   कोटा अपना,बिन  मांगे  पूरा    कर जाए |

कीमे   से  भरा  पराठा      भी,
मक्खन के साथ मिले स्वामी |
हर  लंच - डिनर में  नान-वैज्-,
की तीन डिशेज कर दे स्वामी |

फ्राइडलीवर और किडनी भी,दारू संग चखने तर आए |
है आठ लार्ज कोटा अपना,बिन मांगे,  पूरा कर जाए |

होजाय भले कैंसर फिर भी,
मैं नहीं डरूं वह शक्ति  दे |
अगड़्म्-बगड़म बस नानवैज,
दे दे मुझको मत भक्ति दे |

हो मुर्ग मुसल्ल्म अंत समय,उदरस्थ करे और तर जाए |
अंतिम घड़ियों में आठ लार्ज ,कवि'राज'पिये और मर जाए |

वह, सुरापात्र  दो     दयानिधे,
               जब मूड,  बने तब भर जाए |................ 


***

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना है तामसिक खान पान से संसिक्त। अमरीकी जीवन शैली रहनी सहनी के निकट।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यह एक साधारण सा व्यंग्य था अगर आपको पसंद आया तो धन्यवाद/आभार आपका |'

      हटाएं
  2. वाह ....क्या सुरा-कबाव पुराण है ....सुन्दर ....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार मित्रवर |

      हटाएं