वह सुरा - पात्र दो दयानिधे,जब मूड बने तब भर जाए |
है आठ लार्ज, कोटा अपना,बिन - मांगे पूरा कर जाए |
प्रातः उठते ही हैम - चिकन,
फ्राइड फिश से हो ब्रेकफास्ट |
हो मट्न लंच में हे स्वामी,
मैं बटरचिकन से करूं लास्ट |
मिलजाय डिनर बिरयानी का,संग चिकनसूप भरकर आए |
है आठ लार्ज, कोटा अपना,बिन मांगे, पूरा कर जाए |
हो आमलेट से, दिवस शुरू,
तीखे कैचप के साथ प्रभो |
फ्राईफिश, सींक कवाब मिले,
जब करूं लंच मैं महाप्रभो |
बस मुर्गतन्दूरी, मटन - करी,नित नैक्स्टडिनर लेकर आए |
है आठ लार्ज, कोटा अपना,बिन मांगे पूरा कर जाए |
कीमे से भरा पराठा भी,
मक्खन के साथ मिले स्वामी |
हर लंच - डिनर में नान-वैज्-,
की तीन डिशेज कर दे स्वामी |
फ्राइडलीवर और किडनी भी,दारू संग चखने तर आए |
है आठ लार्ज कोटा अपना,बिन मांगे, पूरा कर जाए |
होजाय भले कैंसर फिर भी,
मैं नहीं डरूं वह शक्ति दे |
अगड़्म्-बगड़म बस नानवैज,
दे दे मुझको मत भक्ति दे |
हो मुर्ग मुसल्ल्म अंत समय,उदरस्थ करे और तर जाए |
अंतिम घड़ियों में आठ लार्ज ,कवि'राज'पिये और मर जाए |
वह, सुरापात्र दो दयानिधे,
जब मूड, बने तब भर जाए |................
***
सुन्दर रचना है तामसिक खान पान से संसिक्त। अमरीकी जीवन शैली रहनी सहनी के निकट।
जवाब देंहटाएंयह एक साधारण सा व्यंग्य था अगर आपको पसंद आया तो धन्यवाद/आभार आपका |'
हटाएंवाह ....क्या सुरा-कबाव पुराण है ....सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार मित्रवर |
हटाएं